थोड़ी देर में दो लड़के आये और जबर्दस्ती उन दो गरीबो से लड़ने लगे । कुछ तो जगह काम थी और कुछ लड़को की दादागिरी से हंगामा हो गया । आस पास बैठे लोगो ने उन सभ्य से दिखने वाले लड़को का समर्थन किया । जैसे - तैसे ४ (4 ) की सीट पर अब ६ (6) को बिठा लिया गया ।
सही से कहु, हम नफरत करते हैं बाहरी गन्दगी से, दिखने वाली बुराइयों से, आँखो को न भाने वाले रंगो से । वो सही है या गलत कभी नही सोचा पर बस हमें नफरत हैं । हमने कभी किसी के अन्दर झाँकने की कोई कोशिश ही नहीं की ।
दोनों चेहरों को देख के लग रहा था की उनकी सादी हुऐ कुछ साल बित गए होंगे, उनका आपसी सम्नवय और उनका मासूम सा बच्चा, ये प्रमाणित कर रहे थे । उनके चहरे पर छोटी सी मुस्कान और शांत थे ।
डिब्बे के माहौल में बातों से गर्मी आ गयी लगा कहीं तो कुछ हुआ हैं मैनें पीछे पीछे मुड के देखा, काले से कोट में, मोटा सा चश्मा लगाये, दो टिकट चेकर थे । थोड़ी ही देर में वो हमारे पास आ गए ।
लाल और अशांत हो गए चेहरों से लग रहा था की उन्होंने टिकिट नही लिया १० (10 ) मिनट के बखेड़े के बाद वो साथ ले गए उन दोनों सभ्य से दिखने वाले लड़को को । अब हम फिर से ४ (4 ) हो गए सीट पर । गरीब से दिखने वाले वो दो चहरे अभी भी शांत थे ।
-लखपत सिंह पुरोहित
(कुछ हिंदी लिखने मैं गलतियाँ हुई हैं उसके लिए माफ़ करें )