Friday, 5 February 2016

माँ

                                         














दुआए तेरी साथ है  तो चल रहा हूँ पैरों ने तो साथ मेरा कब का छोड़ा हैं 
विचार, मस्तिष्क से आने बंद हैं 
कोई कहे आदत हैं मुझे भूलने कि 
पर वो क्या जाने, हर कवायदत याद रखने की मेरी रदद हैं । 


चहरे चहुंओर, चमचमाती  चकाचौंध रोशनी 
कैसे करू अलग भला बुरा 
बंजर जमीं, गया रास्ते भटक, मैं जा रहा कहा ?

ले चल मुझे उँगली पकड़ 
पुराने दिनों कि तरह 
गोदी में तेरी, सोये कई जुग बीत गये । 
                                     -लखपत सिंह पुरोहित


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