Friday, 5 February 2016

नासमझ हम














बोतल गिरते ही पानी फैल गया, गंदे से कपड़ो में बैठे उन दो चेहरों को ट्रैन के डिब्बे में बैठे सारे लोगों ने घूर कर देखा, घृणा का भाव चरम पर था। पर गलती नही थी बस बोतल छूट गयी थी पसीनें से भीगे उनके हाथों से। शायद उन्होंने ट्रैन पकने के लिए लम्बी दौड़ लगाई हो ।

थोड़ी देर में दो लड़के आये और जबर्दस्ती उन दो गरीबो से लड़ने लगे ।  कुछ तो जगह काम थी और कुछ लड़को की दादागिरी से हंगामा हो गया ।  आस पास बैठे लोगो ने उन सभ्य से दिखने वाले लड़को का समर्थन किया ।  जैसे - तैसे ४ (4 ) की सीट पर अब ६ (6) को बिठा लिया गया । 

सही से कहु, हम नफरत करते हैं बाहरी गन्दगी से, दिखने वाली बुराइयों से, आँखो को न भाने वाले रंगो से ।  वो सही है या गलत कभी नही सोचा पर बस हमें नफरत हैं ।  हमने कभी किसी के अन्दर झाँकने की कोई  कोशिश ही नहीं की  । 

दोनों चेहरों को देख के लग रहा था की उनकी सादी हुऐ कुछ साल बित गए होंगे, उनका आपसी सम्नवय और उनका मासूम सा बच्चा, ये प्रमाणित कर रहे थे ।  उनके चहरे पर छोटी सी मुस्कान और शांत थे । 

डिब्बे के माहौल में बातों से गर्मी आ गयी लगा कहीं तो कुछ हुआ हैं मैनें पीछे पीछे मुड के देखा, काले से कोट में, मोटा सा चश्मा लगाये, दो टिकट चेकर थे ।  थोड़ी ही देर में वो हमारे पास आ गए । 

लाल और अशांत हो गए चेहरों से लग रहा था की उन्होंने टिकिट नही लिया १० (10 ) मिनट के बखेड़े के बाद वो साथ ले गए उन दोनों सभ्य से दिखने वाले लड़को को । अब हम फिर से ४ (4 ) हो गए सीट पर ।  गरीब से दिखने वाले वो दो चहरे अभी भी शांत थे । 
                                            -लखपत सिंह पुरोहित 

(कुछ हिंदी लिखने मैं गलतियाँ हुई हैं उसके लिए माफ़ करें )

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